● कर्पूरी ठाकुर को दिया जाएगा भारत रत्न केंद्र सरकार का ऐलान |

केंद्र सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने का ऐलान किया गया है. उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा.

Karpuri Thakur

कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 समस्तीपुर में हुआ था तथा इनका निधन 64 साल की उम्र में 17 फरवरी 1988 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ था |

 कर्पूरी ठाकुर बिहार में एक बार उपमुख्यमंत्री, दो बार मुख्यमंत्री और दशकों तक विधायक और विरोधी दल के नेता रहे। 1952 की पहली विधानसभा में चुनाव जीतने के बाद वे बिहार विधानसभा का चुनाव कभी नहीं हारे। राजनीति में इतना लंबा सफ़र बिताने के बाद जब वो मरे तो अपने परिवार को विरासत में देने के लिए एक मकान तक उनके नाम नहीं था।

• कर्पूरी ठाकुर (24 जनवरी 1924 17 फरवरी 1988) भारत के स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक, राजनीतिज्ञ तथा बिहार राज्य के दूसरे उपमुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं।लोकप्रियता के कारण उन्हें जन-नायक कहा जाता था।कर्पूरी ठाकुर का जन्म भारत में ब्रिटिश शासन काल के दौरान समस्तीपुर के एक गांव पितौंझिया, जिसे अब कर्पूरीग्राम कहा जाता है, में कुर्मी जाति में हुआ था। जननायक जी के पिताजी का नाम श्री गोकुल ठाकुर तथा माता जी का नाम श्रीमती रामदुलारी देवी था। इनके पिता गांव के सीमांत किसान थे तथा अपने पारंपरिक पेशा हल चलाने का काम करते थे।भारत छोड़ो आन्दोलन के समय उन्होंने २६ महीने जेल में बिताए थे। वह 22 दिसंबर 1970 से 2 जून 1971 तथा 24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979 के दौरान दो बार बिहार के मुख्यमंत्री पद पर रहे। 26 जनवरी, 2024 को उन्हें मरणोपरांत भारत सरकार द्वारा भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा, जैसा कि गणतंत्र दिवस से कुछ दिन पहले 23 जनवरी 2024 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषणा की गई थी |

Karpuri Thakur


• कर्पूरी ठाकुर दूरदर्शी होने के साथ-साथ एक ओजस्वी वक्ता भी थे आजादी के समय पटना की कृष्णा टॉकीज हॉल में छात्रों की सभा को संबोधित करते हुए एक क्रांतिकारी भाषण दिया कि "हमारे देश की आबादी इतनी अधिक है कि केवल थूक फेंक देने से अंग्रेजी राज बह जाएगा" इस भाषण के कारण उन्हें दण्ड भी झेलनी पड़ी थी.


वह देशवासियों को सदैव अपने अधिकारों को जानने के लिए जगाते रहे, वह कहते थे "संसद के विशेषाधिकार कायम रहे, अक्षण रहे बढ़ते रहें आवश्यकतानुसार, परंतु जनता के अधिकार भी यदि जनता के अधिकार कुचले जायेंगे तो जनता आज-न-कल संसद के विशेषाधिकारओं को चुनौती देगी"

• राजनीतिक जीवन

कर्पूरी ठाकुर का चिर परिचित नारा था.. "अधिकार चाहो तो लड़ना सीखो पग पग पर अड़ना सीखो जीना है तो मरना सीखो"

कर्पूरी ठाकुर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण नेता थे, जो अपनी अद्वितीय वक्तृता और साहसपूर्ण भाषा के लिए प्रसिद्ध थे। उनका यह नारा, "अधिकार चाहो तो लड़ना सीखो पग पग पर अड़ना सीखो जीना है तो मरना सीखो," उनके दृढ़ नेतृत्व को दर्शाता है और इसने उनके सतत संघर्ष की भावना को प्रतिस्थापित किया है।


उन्होंने देश के स्वतंत्रता संग्राम में अपनी भूमिका के लिए पहचान बनाई, लोगों को जागरूक किया, और अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ सख्त स्थिति अपनाई। उनका उक्त भाषण जिसमें उन्होंने कहा कि थूक फेंकने से ही अंग्रेजी राज बह जाएगा, यह उनकी साहसपूर्ण व्यक्तिगतता और दृढ़ निर्णय को प्रकट करता है।


उनका संविदानिक दृष्टिकोण और लोकतंत्र के मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता ने उन्हें एक सशक्त नेता बनाया। उन्होंने सदैव अपने देशवासियों को उनके अधिकारों की रक्षा करने के लिए जागरूक करने का कार्य किया और उन्हें यहां तक कहते हुए कि जनता को अपने अधिकारों का पूरा हक होना चाहिए।


• कर्पूरी ठाकुर का राजनीतिक जीवन एक लड़ाई का संग्राम था, जिसमें उन्होंने अपने दृढ़ सिद्धांतों और समर्पण के साथ अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए काम किया। उनका चिरपरिचित नारा न केवल एक विचारशील दृष्टिकोण को प्रतिष्ठित करता है, बल्कि यह एक साहसी और आत्मनिर्भर जीवनशैली को भी प्रतिनिधित्व करता है।

1977 में कर्पूरी ठाकुर ने बिहार के वरिष्ठतम नेता सत्येन्द्र नारायण सिन्हा से नेतापद का चुनाव जीता और राज्य के दो बार मुख्यमंत्री बने। लोकनायक जयप्रकाशनारायण एवं समाजवादी चिंतक डॉ राम मनोहर लोहिया इनके राजनीतक गुरु थे रामसेवक यादव एवं मधुलिमये जैसे दिग्गज साथी थे। लालू प्रसाद यादव, नितीश कुमार, राम विलास पासवान और सुशील कुमार मोदी के राजनीतिक गुरु । बिहार में पिछड़ा वर्ग के लोगों को सरकारी नौकरी में आरक्षण की व्यवस्था 1977 में की । सत्ता पाने के लिए 4 कार्यकम बने


1. पिछड़ा वर्ग का ध्रुवीकरण 

2. हिंदी का प्रचार प्रसार

3. समाजवादी विचारधारा

4. कृषि का सही लाभ किसानों तक पहुंचाना।

•कर्पूरी ठाकुर बिहार में एक बार उपमुख्यमंत्री, दो बार मुख्यमंत्री और दशकों तक विधायक और विरोधी दल के नेता रहे। 1952 की पहली विधानसभा में चुनाव जीतने के बाद वे बिहार विधानसभा का चुनाव कभी नहीं हारे । राजनीति में इतना लंबा सफ़र बिताने के बाद जब वो मरे तो अपने परिवार को विरासत में देने के लिए एक मकान उनके नाम नहीं था। ना तो पटना में, ना ही अपने पैतृक घर में वो एक इंच जमीन जोड़ पाए ।


• जब करोड़ो रुपयों के घोटाले में आए दिन नेताओं के नाम उछल रहे हों, कर्पूरी जैसे नेता भी हुए, विश्वास ही नहीं होता। उनकी ईमानदारी के कई किस्से आज भी बिहार में आपको सुनने को मिलते हैं। उनसे जुड़े कुछ लोग बताते हैं कि कर्पूरी ठाकुर जब राज्य के मुख्यमंत्री थे तो उनके रिश्ते में उनके बहनोई उनके पास नौकरी के लिए गए और कहीं सिफारिश से नौकरी लगवाने के लिए कहा। उनकी बात सुनकर कर्पूरी ठाकुर गंभीर हो गए। उसके बाद अपनी जेब से पचास रुपये निकालकर उन्हें दिए और कहा, “जाइए, उस्तरा आदि ख़रीद लीजिए और अपना पुश्तैनी धंधा आरंभ कीजिए।"


•कर्पूरी ठाकुर जब पहली बार उपमुख्यमंत्री बने या फिर मुख्यमंत्री बने तो अपने बेटे रामनाथ को पत्र लिखना नहीं भूले। इस पत्र में क्या था, इसके बारे में रामनाथ कहते हैं, "पत्र में तीन ही बातें लिखी होती थीं- तुम इससे प्रभावित नहीं होना। कोई लोभ लालच देगा, तो उस लोभ में मत आना। मेरी बदनामी होगी।" रामनाथ ठाकुर इन दिनों भले राजनीति में हों और पिता के नाम का लाभ भी उन्हें मिला हो, लेकिन कर्पूरी ठाकुर ने अपने जीवन में उन्हें राजनीतिक तौर पर आगे बढ़ाने का काम नहीं किया।


• उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता हेमवती नंदन बहुगुणा ने अपने संस्मरण में लिखा, "कर्पूरी ठाकुर की आर्थिक तंगी को देखते हुए देवीलाल ने पटना में अपने एक हरियाणवी मित्र से कहा था- कर्पूरीजी कभी आपसे पांच-दस हज़ार रुपये मांगें तो आप उन्हें दे देना, वह मेरे ऊपर आपका कर्ज रहेगा। बाद में देवीलाल ने अपने मित्र से कई बार पूछा- भई कर्पूरीजी ने कुछ मांगा। हर बार मित्र का जवाब होता- नहीं साहब, वे तो कुछ मांगते ही नहीं।

कर्पूरी जी के मुख्यमंत्री रहते हुये ही उनके क्षेत्र के कुछ सामंती जमींदारों ने उनके पिता को सेवा के लिये बुलाया। जब वे बीमार होने के नाते नहीं पहुंच सके तो जमींदार ने अपने लठैतों से मारपीट कर लाने का आदेश दिया। जिसकी सूचना किसी प्रकार जिला प्रशाशन को हो गयी तो तुरन्त जिला प्रशाशन कर्पूरी जी के घर पहुंच गया और उधर लठैत पहुंचे ही थे। लठैतो को बंदी बना लिया गया किन्तु कर्पूरी ठाकुर जी ने सभी लठैतों को जिला प्रशाशन से बिना शर्त छोडने का आग्रह किया तो अधिकारीगणो ने कहा कि इन लोगों ने मुख्यमंत्री के पिता को प्रताडित करने का कार्य किया इन्हे हम किसी शर्त पर नही छोड सकते थे। कर्पूरी ठाकुर जी ने कहा " इस प्रकार के पता नही कितने असहाय लाचार एवं शोषित लोग प्रतिदिन लाठियां खाकर दम तोडते है काम करते है कहां तक, किस किस को बचाओगे। क्या सभी मुख्यमंत्री के मां बाप है। इनको इसलिये दंडित किया जा रहा है कि इन्होने मुख्यमंत्री के पिता को उत्पीड़ित किया है, सामान्य जनता को कौन बचायेगा। जाऔ प्रदेश के कोने कोने मे शोषण उत्पीड़न के खिलाफ अभियान चलाओ|